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Ram Prasad Bismil

| Satyaagrah | Revolutionaries

Ram Prasad Bismil

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजूएँ कातिल में है।”

देशभक्ति की भावना से भरी हुई, हमेशा क्रान्तिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा दोहरायी जाने वाली इन पंक्तियों के रचयिता, राम प्रसाद बिस्मिल, उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जो देश की आजादी के लिये अंग्रेजी शासन से संघर्ष करते हुये शहीद हो गये। ये एक महान लेखक व कवि थे। इन्होंने वीर रस से भरी हुई, लोगों के हृदय को जोश से भर देने वाली अनेक कविताएं लिखी। इन्होंने अनेक भावविहल कर देने वाली गद्य रचनाएं भी लिखी। इनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण सरकार द्वारा इन पर मुकदमा चलाकर फाँसी की सजा दे दी गयी थी। इन्होंने अपने देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

बिस्मिल जी के मन में बचपन से ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नफरत भर गई थी। वे हर हाल में देश को आजाद देखना चाहते थे। वह भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए बने संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के संस्थापकों में से एक थे।
 
बिस्मिल की दोस्ती अशफाक उल्लाह खान, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और ठाकुर रोशन सिंह जैसे क्रांतिकारियों से थी और इन सबने मिलकर अंग्रेजों की नाक में दम करना शुरू कर दिया था। ब्रिटिश हुकूमत को दहला देने वाले काकोरी कांड को बिस्मिल ने अपने इन्हीं साथियों की मदद से अंजाम दिया था।
 
इतना ही नहीं बिस्मिल अपनी कविताओं के माध्यम से भी लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोश भरने का काम किया करते थे। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है। इस कविता के माध्यम से इन्होंने युवाओं में जोश भरने का काम किया था। बिस्मल अजीमाबादी नाम से इन्होंने खूब शायरी की थी।
 
काकोरी कांड स्वतंत्रता संग्राम की एक स्वर्णिम घटनाओं में से एक है। 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल सहित करीब 15 क्रान्तिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने लखनभ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर लूट लिया था। इस घटना में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, चन्द्र शेखर आजाद और ठाकुर रोशन सिंह भी शामिल थे। क्रांतिकारियों ने ट्रेन से 8000 रुपए की चोरी की थी। इस घटना के बाद इससे संबंधित क्रांतिकारियों को पकडने के लिए अंग्रेजों ने 50 लोगों को गिरफ्तार किया।
 
आज भी इस बात को सोचकर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि ब्रिटिश शासन के दौरान उनके खजाने को लूट लेना वह भी चलती रेल से और उसकी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर कितने साहस, शौर्य, संकल्प और सुनियोजित रणनीति की जरूरत हुई। इसके पीछे इन क्रांतिकारियों का कोई निजी स्वार्थ नहीं था। देश की आजादी के लिए इन मतवालों ने अपने प्राणों की कभी फिक्र नहीं की। अंग्रेजों के खजाने की इसी लूट को ‘काकोरी कांड' के नाम से याद किया जाता है।
 
डेढ़ साल मुकदमा चलने के बाद अशफाक उल्लाह खान, राम प्रसाद बिस्मिल और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को 19 दिसंबर 1927 को फांसी की सजा दे दी गई थी। फांसी के समय बिस्मिल की उम्र मात्र 30 साल थी।

“मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या!
दिल की बर्बादी के बाद उनका पैगाम आया तो क्या!

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़्याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पैगाम आया तो क्या!
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या!
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या!
आख़िरी शब्दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,
सुबह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या!”

Specifications


Hits
411
Publisher
वैदिक प्रकाशन
Downloads
69
Pages
90 pages
Year
2015

Author


Author
सुधीर विद्यार्थी

लेखक सुधीर विद्यार्थी को उनकी चर्चित कृति क्रांतिकारी आंदोलन-एक पुनर्पाठ के लिए स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान दिया जाएगा। इससे पहले उन्हें शमशेर सम्मान, परिवेश सम्मान, गणमित्र सम्मान, अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान आदि मिल चुके हैं। वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार प्रो काशीनाथ सिंह, कवि राजेश जोशी और डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की चयन समिति ने उनका चयन किया।

काशीनाथ सिंह ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के आंदोलनात्मक अवदान पर विद्यार्थी की किताब नयी दृष्टि से विचार करती है। चित्तौड़गढ़ में होने वाले समारोह में सुधीर विद्यार्थी को सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रीय महत्व के इस सम्मान के लिए देश भर से छब्बीस कृतियां प्राप्त हुई थीं। विद्यार्थी की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े सेनानियों की स्मृति में अनेक स्मारकों का निर्माण करवाने तथा उनकी स्मृतियों को संरक्षित करने के बहुविध कार्य किये हैं। संदर्श जैसी लघु पत्रिका के सम्पादन के साथ विद्यार्थी अपने डायरी लेखन के लिए भी जाने जाते हैं।