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Sunday, 24 November 2024 | 12:34 pm

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रमजान में रील🙆‍♂️
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Men is leaving women completely alone. No love, no commitment, no romance, no relationship, no marriage, no kids. #FeminismIsCancer
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"We cannot destroy inequities between #men and #women until we destroy #marriage" - #RobinMorgan (Sisterhood Is Powerful, (ed) 1970, p. 537) And the radical #feminism goal has been achieved!!! Look data about marriage and new born. Fall down dramatically @cskkanu @voiceformenind
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Feminism decided to destroy Family in 1960/70 during the second #feminism waves. Because feminism destroyed Family, feminism cancelled the two main millennial #male rule also. They were: #Provider and #Protector of the family, wife and children
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Statistics | Children from fatherless homes are more likely to be poor, become involved in #drug and alcohol abuse, drop out of school, and suffer from health and emotional problems. Boys are more likely to become involved in #crime, #girls more likely to become pregnant as teens
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The kind of damage this leftist/communist doing to society is irreparable- says this Dennis Prager #leftist #communist #society #Family #DennisPrager #HormoneBlockers #Woke

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वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे हुए आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान चलाया था

खिलाड़ियों का धार्मिक आधार पर खालिस्तानी आतंकियों को महिमामंडित करना: खतरा कितना बड़ा है?

प्रश्न उठता है कि क्या खालिस्तानी आतंकवाद किसी भी तरह से इस्लामी आतंकवाद से भिन्न है? भारत की छाती पर खालिस्तानी आतंकवाद के बहुत घाव है, और आंकड़ों के अनुसार भारत में हज़ारों लोगों ने जान गंवाई थी
 |  Satyaagrah  |  Anti-National

कल ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसमें वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे हुए आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान चलाया था। इस ऑपरेशन में कई लोगों की जानें गयी थीं और स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था।  इसी के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी थी, जिसके बाद सिख विरोधी दंगे भड़के थे और हजारों सिख मारे गए थे।

इस दिन के बहाने उस खालिस्तानी आन्दोलन को याद किया जाता है जिसने जाने कितने पंजाबी हिन्दुओं की जानें ली थीं।  वह खालिस्तानी आन्दोलन जो सिखों को हिन्दुओं को अलग करने का षड्यंत्र कर रहा है, और वह आन्दोलन जो भारत को तोड़ना चाहता है।  जब से कथित किसान आन्दोलन आरम्भ हुआ है, तब से ऐसे लोगों का चेहरा सामने आता जा रहा है, जिनके धार्मिक विचार कुछ और थे और उनकी छवि कुछ और थी। उन्होंने प्रांतीयता के आधार पर आरम्भ हुए इस किसान आन्दोलन में केवल पंजाब को लेकर ही नारे गढ़े बल्कि हिन्दुओं के खिलाफ भी काफी कुछ बोला।

परन्तु कल अर्थात 6 जून, अर्थात ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर, जिस दिन खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिन्डरेवाले की मौत हुई थी, उस दिन केवल कुछ धार्मिक कट्टर लोगों का ही खालिस्तान के समर्थन में आना हैरान नहीं करता है, क्योंकि कहीं कहीं उनसे यही अपेक्षा होती है, बल्कि हरभजन सिंह और हरप्रीत बरार जैसे खिलाड़ियों का भी समर्थन में आना दिल में डर भर देता है। आखिर ऐसी क्या मानसिकता है जो देश के विरोध में लेजाकर आपको खड़ा कर देती है।

कल जब हरभजन सिंह और हरप्रीत बरार ने ऐसा कुछ किया जिसके कारण यह प्रश्न और स्पष्ट होता है कि जिन लोगों को धर्म से परे जाकर प्यार दिया, वह देश तोड़क ताकतों के साथ कैसे जाकर खड़े हो सकते हैं? पर वह हुए! हरप्रीत बरार जो केवल पंजाब के लिए खेलते हैं बल्कि आईपीएल में पंजाब किंग के लिए खेलते हैं उन्होंने खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों के साथ ट्वीट किया:

 

इस पर किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे कई यूजर्स ने हरप्रीत बरार से आतंकवादी के विचार को कोट करने पर आपत्ति जताई और कहा कि ऐसे विवादास्पद मामलों को विवादास्पद लोगों के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके साथ कई लोगों ने यह भी कहा कि इस प्रकार की मानसिकता बहुत हानिकारक है और युवाओं को प्रभावित करने वाले कई सेलेब्रिटीज खुलकर ऐसे विचारों का साथ दे रहे हैं। हालांकि इस मानसिकता के समर्थन में भी कई आए।

कई यूजर्स ने हरप्रीत बरार पर प्रतिबन्ध लगाने की भी मांग की।

पर अब वाकई बीसीसीआई को सोचना चाहिए कि क्या ऐसी मानसिकता वाले लोगों को राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए? और अब जब पता चल गया है तो क्या उन्हें टीम में बनाए रखना चाहिए और क्या हरप्रीत बरार जैसे लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलना चाहिए?

हालांकि आज भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने वाले हरभजन सिंह ने अपनी पोस्ट के लिए माफी मांग ली है। मगर यह नहीं भूला जा सकता है कि हरभजन सिंह ने जिसे एक शहीद कहकर प्रणाम किया था वह और कोई नहीं बल्कि खालिस्तानी आतंकवादी था। आखिर क्या मानसिकता है जो उन्हें देश विरोधी मानसिकता का समर्थन करने के लिए तत्पर कर देती है?

 

एक और प्रश्न उठता है कि क्या खालिस्तानी आतंकवाद किसी भी तरह से इस्लामी आतंकवाद से भिन्न है? भारत की छाती पर खालिस्तानी आतंकवाद के बहुत घाव है, और आंकड़ों के अनुसार भारत में हज़ारों लोगों ने जान गंवाई थी। क्या भारत एक बार फिर से उसी आतंकवाद को बर्दाश्त कर सकता है?

 क्या भारत एक बार फिर से खालिस्तानी आतंकवाद के नाम पर लाशों की गिनती करना बर्दाश्त कर सकता है?

यदि नहीं तो इस्लामी आतंकवाद की तर्ज पर इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती? हम लोग किसी भी ऐसे मुस्लिम क्रिकेटर की आलोचना करते ही हैं जो अपने मजहब को अपने देश से पहले रखता है। यदि अभी किसी मुस्लिम क्रिकेटर ने ऐसा कुछ कहा होता जिसमें जैशे मोहम्मद या तालिबान समर्थक होने का अहसास दिखाई देता तो क्या होगा? क्या हम ऐसी शान्ति देख पा रहे होते? नहीं!

और जो लोग समाज में आदर्श होते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह अपनी कला में कितने उत्कृष्ट हैं या फिर कितने दक्ष हैं, प्रश्न यह उठता है कि क्या वह देश की पहचान को अपना पा रहे हैं? क्या वह ऐसे किसी संगठन के साथ तो नहीं खड़े हो गए हैं, जो देश की अस्मिता को धार्मिक आधार पर तोड़ रहा है? यदि ऐसा है तो उनके साथ वही कार्यवाही होनी चाहिए, जो आम जनता के साथ होती है, जो आतंकवादियोंके साथ होती है। खिलाड़ी होने के नाम पर उन्हें यह विशेषाधिकार कैसे दिया जा सकता है कि वह कुछ भी बोलकर चले जाएँ?

अब देश धार्मिक आधार एक और विभाजन के लिए तैयार नहीं है, सरकार और बीसीसीआई दोनों से आशा है कि इन दोनों के ही खिलाफ कदम उठाए जाएंगे!

 

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