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Wednesday, 6 November 2024 | 06:56 am

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रमजान में रील🙆‍♂️
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Men is leaving women completely alone. No love, no commitment, no romance, no relationship, no marriage, no kids. #FeminismIsCancer
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"We cannot destroy inequities between #men and #women until we destroy #marriage" - #RobinMorgan (Sisterhood Is Powerful, (ed) 1970, p. 537) And the radical #feminism goal has been achieved!!! Look data about marriage and new born. Fall down dramatically @cskkanu @voiceformenind
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Feminism decided to destroy Family in 1960/70 during the second #feminism waves. Because feminism destroyed Family, feminism cancelled the two main millennial #male rule also. They were: #Provider and #Protector of the family, wife and children
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Statistics | Children from fatherless homes are more likely to be poor, become involved in #drug and alcohol abuse, drop out of school, and suffer from health and emotional problems. Boys are more likely to become involved in #crime, #girls more likely to become pregnant as teens
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The kind of damage this leftist/communist doing to society is irreparable- says this Dennis Prager #leftist #communist #society #Family #DennisPrager #HormoneBlockers #Woke

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नृसिंह अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म के प्रतीक दैत्य हिरण्यकश्यप का वध करना तथा अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करके उसे राज सिंहासन पर

भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार: अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने एवं आततायी का नाश करने हेतु भगवान विष्णु ने लिया चौथा अवतार

भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह भगवान का शरीर मनुष्य का था जबकि उनका मुख सिंह यानी कि शेर का था इसी कारण उन्हें नर + सिंह = नरसिंह कहा जाता है। नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के उग्र रूप का आभास कराता है । नरसिंह भगवान के शरीर में हाथ के स्थान पे शेर के पंजे थे और उसमे बड़े बड़े नाखून इसी नाखून से भगवान ने हिरण्यकश्यपु का वध किया था।
 |  Satyaagrah  |  Dharm / Sanskriti

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भगवान नरसिंह के अवतार से दो बातें तो चरितार्थ होती हैं कि भगवान हमारे आस-पास हर एक वस्तु में है हर एक इंसान में है हर एक जीव में तभी तो भगवान नरसिंह खंभे से प्रगट हो गए। और दूसरी यह कि जो कोई भी सच्चे मन से भगवान की आराधना करता है भगवान उसका साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। प्रहलाद सच्चा भक्त था इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हो सका । कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोई। भगवान विष्णु का नृसिंह  अवतार इतना ज्यादा विध्वंसक  था कि स्वयं उनका भक्त प्रह्लाद भी इससे डर गया था। तब भगवान शिव को शरभ अवतार लेकर उन्हें शांत करवाना पड़ा था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से नरसिंह अवतार चतुर्थ अवतार है। इसे नृसिंह अवतार भी कहते हैं जिसमें उनका आधा शरीर सिंह तथा आधा मानव का  था।

सतयुग में ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप। हिरण्याक्ष भगवान ब्रह्म से मिले वरदान की वजह से बहुत अहंकारी हो गया था। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वो भूदेवी को साथ लेकर पाताल में भगवान विष्णु की खोज में चला गया।

भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उसके साथ युद्ध किया और उसका विनाश कर दिया। लेकिन संसार के लिए खतरा अभी टला नही था क्योंकि उसका भाई हिरणाकश्यप अपने भाई के मौत की बदला लेने को आतुर था।

उसने देवताओ से बदला लेने के लिए अपनी असुरो की सेना से देवताओ पर आक्रमण कर दिया। हिरणाकश्यप देवताओ से लड़ता लेकिन हर बार भगवान विष्णु उनकी मदद कर देते।

हिरणाकश्यप ने सोचाअगर मुझे विष्णु को हराना है तो मुझे अपनी रक्षा के लिए एक वरदान की आवश्यकता है। क्योंकि मै जब भी देवताओ और मनुष्यों पर आक्रमण करता हु , विष्णु मेरी सारी योजना तबाह कर देता है ……उससे लड़ने के लिए मुझे शक्तिशाली बनना पड़ेगा

अपने दिमाग में ऐसे विचार लेकर वो वन की तरफ निकल पड़ता है और भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो जाता हो। वो काफी लम्बे समय तक तपस्या में इसलिए रहना चाहता था ताकि वो भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांग सके। इस दौरान वो अपने ओर अपने साम्राज्य के बारे में भूलकर कठोर तपस्या में लग जाता है।

इस दौरान इंद्रदेव को ये ज्ञात होता है कि हिरणाकश्यप असुरो का नेतृत्व नही कर रहा है। इंद्रदेव सोचते है कियदि इस समय असुरो को समाप्त कर दिया जाए तो फिर कभी वो आक्रमण नही कर पाएंगे। हिरणाकश्यप के बिना असुरो की शक्ति आधी है अगर इस समय इनको खत्म कर दिया जाए तो हिरणाकश्यप के लौटने पर उसका आदेश मानने वाला कोई शेष नही रहेगा।

ये सोचते हुए इंद्र अपने दुसरे देवो के साथ असुरो के साम्राज्य पर आक्रमण कर देते है।इंद्रदेव के अपेक्षा के अनुसार हिरणाकश्यप के बिना असुर मुकाबले में कमजोर पड़ गये और युद्ध में हार गये। इंद्रदेव ने असुरो के कई समूहों को समाप्त कर दिया।

 Narasimha relief temple India Belur

हिरणाकश्यप की राजधानी को तबाह कर इन्द्रदेव ने हिरणाकश्यप के महल में प्रवेश किया। जहा पर उनको हिरणाकश्यप की पत्नी कयाधू नजर आयी। इंददेव ने हिरणाकश्यप की पत्नी को बंदी बना लिया ताकि भविष्य में हिरणाकश्यप के लौटने पर उसके बंधक बनाने के उपयोग कर पाए। इंद्रदेव जैसे ही कयाधू को इंद्र लोक लेकर जाने लगे महर्षि नारद प्रकट हुए और उसी समय इंद्र को कहाइंद्रदेव रुक जाओ आप ये क्या कर रहे हो

महर्षि नारद इंद्रदेव के कयाधू को अपने रथ में ले जाते देख क्रोधित हो गये। इंददेव में नतमस्तक होकर महर्षि नारद से कहामहर्षि हिरणाकश्यप के नेतृत्व के बिना असुरो पर आक्रमण किया है और मेरा मानना है कि असुरो के आतंक को समाप्त करने का यही समय है।

वहा के विनाश को देखकर महर्षि नारद ने क्रोधित स्वर में कहाहा ये सत्य है मै देख सकता हूं, लेकिन ये औरत इसमें कहा से आयी , क्या इसने तुमसे युद्ध किया , मुझे ऐसा नही लग रहा है कि इसने तुम्हारे विरुद्ध कोई शस्र उठाया है फिर तुम उसको क्यों चोट पंहुचा रहे हो ? “

इंद्रदेव ने महर्षि नारद की तरफ देखते हुए जवाब दिया कि वो उसके शत्रु हिरणाकश्यप की पत्नी है जिसे वो बंदी बना करले जा रहा है ताकि हिरणाकश्यप कभी आक्रमण करे तो वो उसका उपयोग कर सके। महर्षि नारद ने गुस्से में इन्द्रदेव को कहा कि केवल युद्ध जीतने के लिए दुसरे की पत्नी का अपहरण करोगे और इस निरपराध स्त्री को ले जाना महापाप होगा।

इंद्रदेव को महर्षि नारद की बाते सुनने के बाद कयाधू को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नही था। इंद्रदेव ने कयाधू को छोड़ दिया और महर्षि नारद को उसका जीवन बचाने के लिए धन्यवाद दिया।

महर्षि नारद ने पूछा कि असुरो के विनाश के बाद वो अब कहा रहेगी। कयाधू उस समय गर्भवती थी और अपनी संतान की रक्षा के लिए उसने महर्षि नारद को उसकी देखभाल करने की प्रार्थना की। महर्षि नारद उसको अपने घर लेकर चले गये और उसकी देखभाल की।

इस दौरान वो कयाधू को विष्णु भगवान की कथाये भी सुनाया करते थे जिसको सुनकर कयाधू को भगवान विष्णु से लगाव हो गया था। उसके गर्भ मर पल रहे शिशु को भी विष्णु भगवान की कहानियों ने मोहित कर दिया था।

समय गुजरता गया एक दिन स्वर्ग की वायु इतनी गर्म हो गयी थी कि सांस लेना मुश्किल हो रहा था। कारण खोजने पर देवो को पता चला कि हिरणाकश्यप की तपस्या बहुत शक्तिशाली हो गयी थी जिसने स्वर्ग को भी गर्म कर दिय था। इस असहनीय गर्मी को देखते हुए देव भगवान ब्रह्मा के पास गये और मदद के लिए कहा। भगवान ब्रह्मा को हिरणाकश्यप से मिलने के लिए धरती पर प्रकट होना पड़ा। भगवान ब्रह्मा हिरणाकश्यप की कठोर तपस्या से बहुत प्रस्सन हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।

हिरणाकश्यप ने नतमस्तक होकर कहाभगवान मुझे अमर बना दो

भगवान ब्रह्मा ने अपना सिर हिलाते हुए कहापुत्र , जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु निश्चित है मै सृष्टि के नियमो को नही बदल सकता हु कुछ ओर मांग लो

हिरणाकश्यप अब सोच में पड़ गया क्योंकि जिस वरदान के लिए उसने तपस्या की वो प्रभु ने देने से मना कर दिया |हिरणाकश्यप अब विचार करने लगा कि अगर वो असंभव शर्तो पर म्रत्यु का वरदान मांगे तो उसकी साधना सफल हो सकती है। हिरणाकश्यप ने कुछ देर ओर सोचते हुए भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा।

प्रभु मेरी इच्छा है कि मै ना तो मुझे मनुष्य मार सके और ना ही जानवर , ना मुझे कोई दिन में मार सके और ना ही रात्रि में , ना मुझे कोई स्वर्ग में मार सके और ना ही पृथ्वी पर , ना मुझे कोई घर में मार सके और ना ही घर के बाहर , ना कोई मुझे अस्त्र से मार सके और ना कोई शस्त्र से

हिरणाकश्यप का ये वरदान सुनकर एक बार तो ब्रह्मा चकित रह गये कि हिरणाकश्यप का ये वरदान बहुत विनाश कर सकता है लेकिन उनके पास वरदान देने के अलावा ओर कोई विकल्प नही था। भगवान ब्रह्मा ने तथास्तु कहते हुए मांगे हुए वरदान के पूरा होने की बात कही और वरदान देते ही भगवान ब्रह्मा अदृश्य हो गये।

हिरणाकश्यप खुशी से अपने साम्राज्य लौट गया और इंद्रदेव द्वारा किये विनाश को देखकर बहुत दुःख हुआ। उसने इंद्रदेव से बदला लेने की ठान ली और अपने वरदान के बल पर इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया। इंद्रदेव के पास कोई विकल्प ना होते हुए वो सभी देवो के साथ देवलोक चले गये। हिरणाकश्यप अब इंद्रलोक का राजा बन गया।

हिरणाकश्यप अपनी पत्नी कयाधू को खोजकर घर लेकर गया। कयाधू के विरोध करने के बावजूद हिरणाकश्यप मनुष्यों पर यातना ढाने लगा और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला अब कोई नही था। अब कयाधू ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रहलाद रखा गया।जैसे जैसे प्रहलाद बड़ा होता गया वैसे वैसे हिरणाकश्यप ओर अधिक शक्तिशाली होता गया।

हालांकि प्रहलाद अपने पिता से बिलकुल अलग था और किसी भी जीव को नुकसान नही पहुचता था। वो भगवान विष्णु का अगाध भक्त था और जनता उसके अच्छे व्यवाहर की वजह से उससे प्यार करती थी।

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